शनि पर्वत | Shani Parvat
शनि मेहनत, श्रम, गंभीरता, शांति, बुद्धिमता, दूरदर्शिता, निराशा, अवसाद एवं दु:खांत संगीत, सेवार्थ कार्यों के कारक हैं।
स्थान:- हथेली में मध्यमा अंगुली की जड़ में शनि पर्वत का स्थान माना गया है।
शारीरिक संरचना:- हथेली में शनि प्रभाव होने पर शनि प्रधान व्यक्ति की पीली, शुष्क, रूखी, झुर्रादार त्वचा, लंबे दांत, बेतरकीब मोटे बाल, लंबा चेहरा, धंसे हुये उभरी हड़ियों वाले गाल, काली आपस में जुड़ी हुई भौहें, निराश धंसी हुई आंखें जिनमें प्राय: क्रोध व संदेह के समय ही चमक आती है, लंबी नसयुक्त गर्दन, उभरे हुये नाक के नथुने तथा पुरुषों में गालों पर दाढ़ी का अभाव एवं कंठ की उभरी हुई हड्डी विशेषता है।
स्वभाव व गण:- शनि प्रधान व्यक्ति एक तरह से दार्शनिक विचारधारा के होते हैं। हर समय जन्म मृत्यु के बारे में सोचते है। इनको संसार सारहीन नजर आता है। शीघ्र हताश व निराश हो जाते हैं लेकिन कर्मठ होते हैं। ये कानून को मानने वाले अन्तर्मुखी तथा तंत्र क्षेत्र में विशेष कार्य करते हैं। मशीनरी या अनगढ़ कलाकृतियों के माध्यम से धन कमाते हैं। ये प्राय: संतोषी स्वभाव के होते हैं तथा व्यावहारिक धरातल पर ही रहते हैं। ये मितव्ययी तथा वस्तु की उपयोगिता पर ध्यान देते हैं।
शनि पर्वत का उभार :
1. अतिविकसितः- यदि हथेली में शनि पर्वत का उभार अत्यधिक हो तो यह ग्रह बुरा लक्षण है। ऐसे व्यक्ति विशेष चिंतायुक्त, दु:खी, मृत्यु संबंधी बातें सोचना, लोभी उत्साहहीन, अविश्वासी, विवाह में अरुची होना तथा अन्य बुरे लक्षण होने पर आत्महत्या तक की बातें दिमाग में लाते हैं। ।
अविकसितः- हाथ में शनि पर्वत अत्यधिक दबा हुआ हो तो व्यक्ति सामान्य विचारवान, जोखिम से दूर रहने वाला तथा परिश्रम अधिक लेकिन कम आय में ही संत रहता है, बशर्ते कोई जोखिम न उठाना पड़े।
शनि की अंगुली:- शनि प्रभावी व्यक्तियों के मध्यमा अंगुली का पहला पोरा लम्बा हो तो ऐसे व्यक्ति गंभीर शास्त्र, धर्म शास्त्र एवं रहस्यमयी विधाओं का अध्ययन करते हैं। द्वितीय पोरा लंबा होने पर जमीन-जायदाद, केमीकल, खनिज पदार्थ एवं लौह मशीनरी का व्यापार करता है। तीसरा पोरा बड़ा होने पर व्यक्ति चालाकी, स्वार्थी एवं निम्नस्तरीय कार्य भी कर सकता है।
शनि का एपेक्सः- शनि पर्वत का एपेक्स शनि पर ही हो तो व्यक्ति गंभीर, दूरदर्शी तथा बुद्धिमान होता है। यदि यह मध्यमा अंगुली की तरफ सरक जाये तो व्यक्ति रहस्यवाद की तरफ झुकता है। शनि एपेक्स के सूर्य की तरफ खिसक जाने पर व्यक्ति दूसरे के विचारों से सहमत नहीं होता। हृदय रेखा की तरफ खिसक जाने पर व्यक्ति में आत्म केंद्रिता बहुत बढ़ जाती है। व्यक्ति भीड़भाड़ से डरता है। |
हथेली की पष्टताः- हाथ में शनि पर्वत सबल हो तथा हथेली सख्त हो तो व्यक्ति एकांतप्रिय, मेहनती एवं गम्भीर होता है। हथेली लचकदार हो तो व्यक्ति में शनि के गुणों का सामंजस्य रहता है। यदि हथेली पिलपिली हो जाये तो व्यक्ति आलसी, काम से जी चुराना, दूसरों की तरक्की से ईर्ष्या करना, दूसरों की कृपा एवं सहानुभूति प्राप्ति हेतु अपने को दयन दर्शाता है।
हथेली का रंग :
शनि प्रभावी व्यक्तियों की हथेली के रंग का फल इस प्रकार है
1. पीला रंग हो तो व्यक्ति निराश एवं चितिंत होता है।
2. सफेद रंग हो तो व्यक्ति व्यंग्यकर्ता एवं तानाशाह होता है।
3. गुलाबी रंग हो तो उत्साही, मेहनती और कर्मठ होता है।
4. नीला रंग हो तो रक्त की कमी, स्नायु तंत्र संबंधी रोग एवं लकवा इत्यादि की भावना बढ़ जाती है। निराशा, आलस्य, अवसाद एवं नीरसता भी बढ़ जाती है।
शनि पर्वत का झुकाव :
(1) मध्यमा अंगुली की तरफ हो तो एकान्तप्रिय व आत्म केन्द्रित।
(2) गुरु पर्वत की तरफ हो तो मिथ्याभिमान।
(3) सूर्य पर्वत की तरफ हो तो विचारों में गंभीरता।
(4) हृदय रेखा की तरफ हो तो प्रेम प्रसंगों में शंका या झिझक।
चिह्न :
(1) क्रॉस- शनि क्षेत्र का क्रॉस अशुभता दर्शाता है। यह दुर्घटना खासकर सींग वाले जानवर से तथा रोग (स्नायु, वातविकार) दर्शाता है। यदि शुक्र क्षेत्र व संतान रेखा पीड़ित हो तो कभी-कभी संतान संबंधी परेशानी भी देता है।
(2) काला तिल या निशान- काला तिल शनि क्षेत्र पर भावनाओं एवं मानसिकता को दूषित करता है।
(3) वृत्त- शनि क्षेत्र का वृत्त अशुभ फल प्रदाता है।
(4) सितारा- शनि क्षेत्र का सितारा अत्यंत अशुभ है। यह दुर्घटना या अत्यन्त निराशा एवं आत्महंता भी बना सकता है।
(5) जाल- शनि क्षेत्र का जाल पग-पग पर बाधा, धनाभाव, नैराश्य एवं बंधन देता है।
(6) त्रिभुज - जातक को धर्म, रहस्य विधाओं यथा ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, अध्यात्म की ओर आकृष्ट करता है।
(7) वर्ग- शनि क्षेत्र का वर्ग दर्घटनाओं से बचाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 'दुर्घटना घटित होने पर भी जातक के प्राणों का संकट नहीं होता है।
शनि प्रभाव एवं रोजगार श्रेत्र :- तंत्र धर्म, रहस्यमयी विधायें, रसायन, भौतिकी, गणत, मशीनरी कषि, पशुपालन, तेल डीजल, पैट्रोलियम पदार्थ, खनन कोयला, श्रम विभाग, अनगढ़ कलाकृतियां आदि।
बीमारीः- हथेली में शनि पर्वत पर अशभ चिह्न होने पर शनि जब रोग कारक बनता पायावकार गठिया नमों में सजन रडी टटना, दांत या कान की बीमारी, दीघावधि की बीमारी, लकवा, चिड़चिड़ापन आदि देता है।

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