केन उपनिषद्
पृष्ठ ४२
अध्याय ०९
यथार्थ जीवन
ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु
सह वीर्यं करवावहै
तेजस्विना वधीतमस्तु
मा विद्विषावहै ।।
पिछले अध्यायों में हमने देखा कि सूक्ष्म दुनिया के बहुत सारे स्तर हैं । जैसे हमारी यह भौतिक दुनिया विविधताओं से भरी है उसी तरह चेतना की सूक्ष्म दुनिया में भी विविधतायें पायी जाती हैं । कैसे हम मृत्यु के पश्चात पूर्वज,पितृ, यक्ष, देवता और सिद्ध बनते हैं । जैसे चिकित्सा विज्ञान की प्रसिद्ध पुस्तक ' मिटीरिया मेडिका', जिसमें सभी औषधियों के बारे में विस्तार से लिखा है । उदाहरण के लिए आयोडीन का संबंध थायोराइड से है, भाटकटैया का कलेजे से, बेसिल का संबंध श्वसन तंत्र से है । पूरा चिकित्सा विज्ञान इसी विषय पर कार्य करता है जिसके अनुसार एक विशिष्ट पदार्थ हमारे शरीर के एक विशिष्ट अंग पर प्रभाव डालता है । इस क्षेत्र में चेतना के स्तर पर भी बहुत सारे शोध किये गये हैं । एक विशिष्ट पशु इस ग्रह पर विशिष्ट स्पंदन प्रदान करता है । अगर वह पशु विलुप्त हो जाये तो इस धरती का समीकरण बदल जायेगा । सब कुछ बदल जायेगा । डी. एऩ ए. में एक अंक परिवर्तन मात्र से पूरी धरती पर जीवन संभव नहीं होगा । तुमने कभी तरंग सिद्धांत के बारे में सुना है ? अगर एक प्राणी भी इस ब्रह्माण्ड से गायब हो जाये , मान लो ब्रह्माण्ड की सारी चींटियाँ गायब हो जाये को यह ठीक नहीं होगा । तो, हर एक प्राणी, इस धरती पर एक विशिष्ट स्पंदन देता है । इसी तरह, हमारे शरीर के हर एक अंग पर एक विशिष्ट ग्रह का अलग - अलग प्रभाव होता है । तुम्हें इसके विषय में पता है ?
सूक्ष्म और बृहद् दोनों ब्रह्माण्ड एक दूसरे से पूरी तरह संबंधित हैं । एक पौधा, एक ग्रह, मानव शरीर का एक अंग, एक पशु, एक अन्न का दाना या एक पुष्प सब एक दूसरे संबंधित हैं । शरीर का एक विशिष्ट अंग विशिष्ट एक विशिष्ट अन्न के दान से संबंध रखता है । इसी तरह एक विशिष्ट आकृति, एक विशिष्ट पशु, एक विशिष्ट अंग, एक विशिष्ट संख्या, एक विशिष्ट देवता तथा एक विशिष्ट ग्रह एक दूसरे से संबंधित हैं । जैसा कि हम कल ही चर्चा कर रहे थे कि कितन् प्रकार के देवी और देवता है और देखा था कि एक दूसरे से कैसे जुड़े हुये हैं ? यह भी कैसा अद्भुत ज्ञान है । उदाहरण के लिए - शनि ग्रह का संबंध कौवै से, तिल के बीज, हमारे दाँत, जबड़े और पित्त से है । इसी तरह मंगल ग्रह का संबंध काबुली चना, भेड़ और भाट कटैया से है । हर देवता हर मंत्र के विज्ञान को यज्ञ कहते हैं । यज्ञ में एक विशेष प्रकार की आकृति बनाते हैं जिसे मंडल कहते हैं । जिसमें तरह- तरह के अनाज के दाने रखते हैं और मंत्रों के उच्चारण से उसमें देवताओं का स्मरण करते हैं, साथ ही साथ गहरा ध्यान भी करते हैं । यह सारी प्रक्रिया एक ध्यानस्थ मन से पूरी सजगता के साथ करनी चाहिए । परंतु ऐसा अब कम ही दिखाई पड़ता है । लोग यह सब करते हैं परंतु बिना प्राणायाम ध्यान के, जिससे इस प्रक्रिया का प्रभाव एक प्रतिशत ही रह जाता है । यह ऐसा ही है जैसे कि तुम बिना सिम कार्ड के औरअपनी बैटरी को चार्ज किये बगैर, कम क्षमता वाले क्षेत्र में मोबाइल फोन से किसी को नंबर लगा रहे हो । कभी कभी तुम सफल हो जाते हो । अगर इस प्रक्रिया से तुम्हें पूरा लाभ चाहिए तो जो लोग यज्ञ करते हैं उनका प्राणायाम और ध्यान करना अति आवश्यक है ।
यह ऐसा ही है जैसे तुम्हें कानून का कोई ज्ञान न हो और तुम्हें कोई मुकदमा लड़ना हो तो तुम किसी अच्छे वकील की सहायता ले लेते हो । जैसे तुम्हें मैक्सिको से बाहर आना हो तो तुम किसी अप्रवासी वकील की सहायता ले लो । तुम्हें उसके लिए कानून के पूरे ज्ञान की आवश्यकता नहीं है । बस एक अच्छा सा वकील कर के निश्चिंत हो जाओ । ऐसे कुछ लोग हैं जो इस क्षेत्र में निपुण हैं परंतु दुर्भाग्यवश इस विज्ञान का अंत हो रहा है । इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है । जैसा कि हमने देखा कि कैसे एक विशिष्ट फूल, अनाज या पशु इस धरती पर विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा देते हैं । ऐसा ही हमारे शरीर और चेहरे के साथ भी है । हमारे चेहरे के विभिन्न भाग, अलग अलग ग्रहों से संबंध रखते हैं । जैसे नाक बृहस्पति ग्रह से,ललाट बुधग्रह से और कपोल शुक्र ग्रह से संबंधित हैं । ऐसे बहुत से जानकार लोगों को मैंने देखा हैं जो लोगों का चेहरा देखकर उनकी जन्मपत्री बना देते हैं । उन्हें तुम्हारी जन्मतिथि की भी आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वह इस कला में इतने निपुण होते हैं कि वह तुम्हारा चेहरा देखकर तुम्हारी जन्मतिथि तक बता सकते हैं ।

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