केन उपनिषद्
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अध्याय ०८
चमत्कारों से परे
तो बहुत सारे चमत्कार होते रहते हैं । उनमें से बहुत सारे चमत्कार हम कर सकते हैं, परंतु हमें उनमें उलझना या फँसना नहीं चाहिए । अगर ऐसा प्राकृतिक रूप से होता है तब ठीक है । अगर कोई व्यक्ति यह कहे कि मैं कोई आभूषण या अंगूठी निकाल सकता हूँ तो ऐसी बातों से आकर्षित नहीं होना चाहिए ।एक सिद्ध, एक सद्गुरु ऐसी शक्तियों का प्रयोग नहीं करता है । तुमने जीजस द्वारा किए गए बहुत से चमत्कारों के विषय में सुना होगा, वो सब यक्ष द्वारा किए गए हैं । रोटी के एक टुकड़े से बहुत सारे लोगों का पेट भर गया, ये सब होता रहता है । लोग चार या पाँच लोगों का भोजन लाते हैं और चालीस या पचास लोग खा लेते हैं । पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध होता है । यह सब गूढ़ ढंग से होता है । उसके पीछे कोई तर्क नहीं है । मुख्यत: स्टेनलव, यहाँ अगर कोई रूस से हो तो वहाँ पर होने वाली ( रूस में) चमत्कारों की कहानियाँ तुम्हें बतायेगा । मैं वहाँ ज्यादा नहीं जाता हूँ फिर भी लोगों को अनुभव होते रहते हैं । बहुत सारे लोगों को कैंसर या अन्य कोई बीमारी का पता चलता है और उन्हें आपरेशन के लिए ले जाने के पहले संयोग से एक्स रे होता है तो पता चलता है कि वह बीमारी गायब हो गई है ।
कितने लोगों ने ऐसा अनुभव किया है या सुना हैं ? ऐसे लोग हैं और डॉक्टर आश्चर्य चकित हो जाते हैं । बोलते हैं - यह कल की रिपोर्ट है और यह आज की । यह कल और आज के बीच में ऐसा क्या हो गया ? यह चमत्कार कैसे हुआ ? यह सब संभव है । यह सदैव होता रहा है । तो कही भी रुको मत । चलते रहो, वेदों में कहते हैं - चलैवेति चलैवेति चलते रहो । जब तुम एक योगी होते हो, योग करते हो, ध्यान करते हो, दान करते हो, अच्छा काम करते हो, सच्चे दिल के होते हो तो ऐसा प्रचुर मात्रा में होता रहता है । तुम्हारे भीतर भी आशीर्वाद देने की क्षमता है परंतु इसे अपनी विजय मत समझना नहीं तो तुम्हारे साथ भी वही होगा जो देवताओं के साथ हुआ कि वह घास का तिनका तक न हिला सके । यह सार्वभौमिक चेतना जो एक यंत्र की तरह तुम से सब कुछ करा रही है, उसी को सब में देखो । यह ही तुम्हारी विजय है । यह ही ब्रह्म की विजय है । यह है ब्रह्म को स्वीकारना ।

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