केन उपनिषद्
पृष्ठ ३८ - अध्याय ०८
चमत्कारों से परे
प्रश्न :प्रिय गुरुजी, कृपया ब्रह्म को समझने और दूसरे के प्रति बिना शर्त के प्रेम अनुभूति को समझने में क्या संबंध है ?
श्री श्री : प्रेम कोई भावना नहीं है । तुम उसी के बने हो । कभी - कभी तुम्हें इसका अनुभव भी होता है । यह वरदान तुम्हें दिया गया है । जब तुम इसका अहसास नहीं करते तब भी वह होता है क्योंकि तुम उसी से बने हो । जैसे यहाँ हमारे चारों ओर हवा है परंतु जब तुम पंखे के नजदीक जाते हो तब तुम्हें हवा का अहसास होता है । यह पंखा है, जो तुम्हें हवा का अहसास दिलाता है । इसी तरह तुम्हें प्रेम की अनुभूति होती है ।
प्रश्न : अभी हाल ही में बहुत सारे ज्ञानी महात्माओं पर यौन दुराचार के आरोप लगाये गये हैं, इस बारे में आप की क्या राय है ? क्या ऐसा संभव है ?
श्री श्री : हाँ, खासकर भारत में आये दिन दर्जनों स्वामियों पर इस तरह के आरोप टेलिविजन पर दिखाये जाते हैं । जब पात्र पूरी तरह से पका न हो तो इसमें जल डालने पर न तो पात्र ही बचेगा, न ही उसमें भरा हुअा जल । अगर तुम कच्चे पात्र में पानी डालोगे तो क्या होगा ? न तो जल रहेगा न ही पात्र । जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि कभी कभी थोड़ी सी सिद्धि मिल जाती है परंतु वह ज्ञान में पूरी तरह रमें नहीं होते हैं । इस तरह के आरोप में फंसा एक व्यक्ति हमारे पास आया । मैंने कहा - ' देखो अगर तुमने गलती की है तो अच्छा यह होगा कि तुम जाकर यह कह दो कि मुझसे गलती हो गई और मुझे माफ कर दीजिए ।' जब तुम ईमानदार होगे तो लोग तुम्हारा और आदर करेंगे ।लोगों से गलती हो जाती है ।अगर तुमसे भी कोई गलती हो गई है तो कोई बात नहीं है। तुम्हें बस उसे स्वीकार कर, स्वयं को दण्ड दे देना चाहिए । जब तुम एक धार्मिक और अध्यात्मिक गुरु हो तो समाज में ऐसा स्थान होता है कि कोई भी अपराध होने पर तुम्हें स्वयं को दण्ड देना चाहिए । तुम्हें यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि कोई और आकर तुम्हें दण्ड देगा । इसको कहते है - प्रायश्चित । तुम्हें अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए । इसमें अहंकार कहाँ से आ गया ? यह उचित है । परंतु तुम इसको छिपाने का प्रयास करोगे तो यह गलत है । तब तुम्हें दुगना दण्ड मिलेगा । मैंने टेलीविजन पर भी ऐसा कहा है । कोई भी धार्मिक नेता या ऐसा व्यक्ति समाज में जिसका स्थान लोगों की आस्था से जुड़ा है उससे अगर कोई गलती होती है तो उसे सामान्य व्यक्ति से दुगना दण्ड मिलना चाहिए ।
हमें इससे व्यथित नहीं होना चाहिए । हमे ऐसे लोगों के प्रति करुणा का भाव रखना चाहिए । हमें ऐसे लोगों की निंदा करते हुए यह नहीं कहना चाहिए , ' ओह! ये लोग ठीक नहीं है ।' इन्हें मदद की आवश्यकता है ।कुछ लोगों ने धार्मिकता के नाम पर धर्म का दुरुपयोग किया है, चिकित्सा के नाम पर लोगों को ठगा है । उसी तरह राजनीति के नाम पर भी लोगों ने अपनी ताकत और ओहदे का फायदा उठाया है । ऐसा हर क्षेत्र में होता आया है । धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में इसके अपवाद नहीं हैं । ऐसा रामायण के समय से होता रहा है ।रावण ने भी साधु का वेश धर कर सीताजी को धोखा दिया था । वह साधु के वेश में आया था क्योंकि केवल उसी तरह वह उनका अपहरण कर सकता था । तो, ऐसे लोग सदैव अपने क्षेत्र को कलंकित करते रहे हैं । हमें इस बारे में सोचकर ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए । अगर तुम कभी ऐसी रेलगाड़ी में चढ़ जाते हो जो आगे जाकर पटरी से उतर जाती है तो तुम दूसरी रेलगाड़ी में चढ़ जाते हो । तुम यह तो नहीं कहते, 'नहीं, मैं अब कभी रेलगाड़ी में नहीं चढूंगा क्योंकि वह पटरी से उतर गई थी ।' ऐसी घटनायें होती रहती हैं । तुम बस ये देखो कि इस दुनिया में लाखों अच्छे लोग हैं । संपूर्ण मानव आये और गये हैं । बहुत बार तो तुम्हें यह भी नहीं पता होता कि वास्तव में ऐसा ही है, जब तक कि वह प्रमाणित न हो जाये । संचार माध्यम वाले भी बहुत सारी बातें बनाते रहते हैं । तुम बस अपने दिल की सुनो ।

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