केन उपनिषद्
पृष्ठ ३६
अध्याय ०८
चमत्कारों से परे
लोका: समस्ता: सुखिनो भवन्तु ।
सभी का कल्याण हो । सभी के जीवन में शांति हो । मुझे क्या चाहिए ? कुछ भी नहीं । परंतु सबको कुछ तो देना चाहिए । यहाँ पर आशीर्वाद की शक्ति काम करती है । लोगों को लगता होगा कि न्यूयार्क की सामूहिक चेतना बहुत तनावग्रस्त है परंतु ऐसा नहीं है, यहाँ की ऊर्जा बहुत शांत और सुखद है ।
बहुत सारी घटनायें होती रहती है । बहुत सारे अतींद्रिय संवेदी लोग होते हैं जो भूत या भविष्य के विषय में बता सकते हैं । इसमें कुछ निम्न कोटि की आत्मायें भी होती हैं । एक होते हैं कर्ण पिशाच, ऐसे दानव जो तुम्हारे कान में बोलते हैं । अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे पास आये तो वह तुम्हारे कान में आकर बताते हैं कि वह व्यक्ति तुम्हारे पास किस समस्या या कामना से तुम्हारे पास आया है । ऐसे किसी की समस्या या काम जान सकते हैं । कुछ लोग ऐसे होते हैं जो लोगों के भूतकाल के बारे में पूरी तरह बता देते हैं परंतु उनको लोगों के भविष्य के बारे में कुछ बता पाना मुश्किल होता है । आप कभी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं? नाड़ी या अतींद्रिय संवेदी लोग, जो लोगों के भूत या भविष्य के बारे में बताते हैं, उन्हें आत्माओं का समर्थन होता है ।
यक्ष देवताओं से निम्न कोटि के होते हैं । एक बार एक देवता का अहम् जाग गया । उसे लगा ' हमने पूरे विश्व पर विजय प्राप्त कर ली है और पूरा विश्व हमारे नियंत्रण में है ।' एक बार देवताओं के समक्ष एक यक्ष प्रकट हुआ परंतु वे उस यक्ष को पहचान नहीं पाये क्योंकि जब कोई आपसे निचले स्तर का होता है तो अक्सर आप उस पर ध्यान नहीं देते हैं । देवताओं ने कहा, यह कोई यक्ष प्रतीत होता है ।' तो, देवताओं ने अग्निदेव को भेजा ।
जिनको तुम ऊर्जा के देवता भी कह सकते हैं क्योंकि यहाँ सब कुछ ऊर्जा ही है । ऊर्जा एक प्रमुख सिद्धांत है जिस पर सब ब्रह्माण्ड काम कर रहा है । पृथ्वी, ऊर्जा के कारण घूम रही है और सूर्य, ऊर्जा के कारण ही चमक रहा है । वायु भी ऊर्जा के कारण ही बह रही है । तो ऊर्जा के देवता को उस यक्ष के विषय में पता लगा ने के लिए भेजा गया । जब अग्निदेव आये तो यक्ष ने उनसे पूछा ' तुम कौन हो ?' अग्नि ने कहा - मैं सब कुछ जला सकता हूँ, रूपांतरित कर सकता हूँ ।' तब उस यक्ष ने अग्निदेव के सामने एक घास का तिनका रख कर कहा कि 'वह उसे जला कर दिखाये ।' परंतु वह ऐसा करने में असमर्थ रहे ।
'मैं अग्नि हूँ,' 'मैं जातवेद हूँ', 'मैं कुछ हूँ ' । ऐसा कह कर उन्होंने अपनी असीम दिव्य शक्ति को एक व्यक्ति विशेष तक सीमित कर दिया जिससे उनकी शक्ति क्षीण हो गई । इसके फलस्वरूप वह एक छोटे से घास के तिनके को भी जला न सके । तब अग्निदेव वापस आकर देवताओं से बोले कि वह उस यक्ष का कुछ भी नहीं कर पाये और उनको यह भी नहीं पता चल पाया कि वह यक्ष कौन है । इससे हमे व्यावहारिक स्तर पर भी एक शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी को कम नहीं आंकना चाहिए । अगर कोई छोटा सा बच्चा भी कोई बात कहता है तो उसमें भी कुछ न कुछ तत्व होता है । ऐसा मत सोचो कि केवल तुम ही बुद्धिमान हो ।अगर तुम से कम क्षमता वाले व्यक्ति से भी कोई चुनौती आये तो उसकी क्षमता को कम मत आँको ।इसके बाद वायु देवता को उस यक्ष के विषय में पता लगाने के लिए कहा गया क्योंकि सब कुछ वायुमण्डल में ही विद्यमान है परंतु यहाँ तक कि वायु देवता भी घास के तिनके को हिला न सके ।वह भी नहीं पता लगा सके । उस यक्ष को न आँखों से देखा जा सकता था और न ही त्वचा से स्पर्श कर सकते थे । जब यह दोनों देवता उस यक्ष के विषय में न पता लगा सके तो इन्द्र जो देवताओं के प्रमुख है मन के देवता है, उन्हें उस यक्ष के विषय में पता लगाने को कहा गया । जब इन्द्र उस यक्ष के समीप गये तो वह यक्ष एक सुंदर स्री, देवी माता के रूप में बदल गया । इन्द्र चेतना कुंडलिनी शक्ति के समीप यह जानने आयी थी कि वह यक्ष कौन है । इसका उत्तर जानने के लिए कल तक प्रतीक्षा करो । कहीं जाइएगा मत । हम अभी हाजिर होते हैं । ( हँसते हुए) इस तरह से तीसरा अध्याय समाप्त होता है ।

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