*तीसरा प्रश्न: आप कहते हैं, जीओ अभी और यहीं। पर स्वयं को देखकर हमें अभी और यहीं जीने जैसा नहीं लगता। वर्तमान में जीने की बजाय भविष्य की कल्पना में जीना ज्यादा सुखद लगता है। तो क्या करें?*
तो जीओ, वैसे ही जीओ। अनुभव बताएगा कि जो सुखद लगता था वह सुखद था नहीं। प्रश्न से इतना ही पता चलता है कि प्रौढ़ नहीं हो, कच्चे हो अभी। अभी जीवन ने पकाया नहीं। अभी मिट्टी के कच्चे घड़े हो; वर्षा आएगी, बह जाओगे। अभी जीवन की आग ने पकाया नहीं। क्योंकि जीवन की आग जिसको भी पका देती है उसको यह साफ हो जाता है। क्या साफ हो जाता है? एक बात ही साफ हो जाती है कि भविष्य में सुख देखने का अर्थ ही यही है कि वर्तमान में दुख है। इसलिए भविष्य के सपने सुखद मालूम होते हैं।
थोड़ा सोचो! जो आदमी दिनभर भूखा रहा है, वह रात सपने देखता है भोजन के। लेकिन जिसने भरपेट भोजन किया है, वह भी कहीं रात सपने देखता है भोजन के? देखे तो पागल है। जो तुम्हें मिला है उसके तुम सपने नहीं देखते। जो तुम्हें नहीं मिला है उसके ही सपने देखते हो। वर्तमान तुम्हारा दुख से भरा है। इसको भुलाने को, अपने मन को समझाने को, रिझाने को, राहत के लिए, सांत्वना के लिए तुम अपनी आंखें भविष्य में टटोलते हो। कोई सपना, कल सब ठीक हो जाएगा। उस कल की आशा में, भरोसे में आज के दुख को झेल लेते हो। मंजिल की आशा में रास्ते का कष्ट कष्ट नहीं मालूम पड़ता। पहुंचने के ही करीब हैं, हालांकि वह कभी आता नहीं।
आज जिसको तुम आज कह रहे हो यह भी तो कल कल था। इस आज के लिए भी तुमने सपने देखे थे, वे पूरे नहीं हुए। ऐसा ही पिछले कल भी हुआ था, और पिछले कल भी हुआ था। और यही आगे भी होगा। अगर तुम्हारा आज सुखपूर्ण नहीं है, तो दुखपूर्ण आज से सुखपूर्ण कल कैसे निकलेगा? थोड़ा सोचो!
आज कहीं आकाश से थोड़े ही आया है। तुम्हारे भीतर से आया है। तुम्हारा आज अलग है, मेरा आज अलग है। कैलेंडर के धोखे में मत पड़ना। कैलेंडर पर तो तुम्हारा भी आज वही नाम रखता है, मेरा आज भी वही नाम रखता है। लेकिन यहां तुम जितने लोग बैठे हो इतने ही आज हैं। पूरी पृथ्वी पर जितने लोग हैं इतने आज हैं। और अगर तुम पशु-पक्षियों और पौधों को भी गिनो, तो उतनी ही संख्या है। कैलेंडर बिलकुल झूठ है। उससे ऐसा लगता है, एक ही दिन है सबका। रविवार, तो सभी का रविवार। जरूरी नहीं है। किसी की जिंदगी में सूरज उगा हो तो रविवार, और किसी की जिंदगी में अंधेरा हो तो कैसा रविवार!
आज कहीं आकाश से नहीं उतरता है। समय कहीं बाहर से नहीं आता है। समय तुम्हारे भीतर से पैदा होता है। तुम ही आज को जीकर कल को पैदा करोगे। तुम्हारे ही गर्भ में निर्मित होता है कल। कल निर्मित हो रहा है आज।
और इसीलिए मैं कहता हूं, आज और अभी जी लो। और इतने आनंद से जीओ, ऐसे भरपूर जीओ कि जो तुम्हारे गर्भ में निर्मित हो रहा है वह भी रूपांतरित हो जाए, वह तुम्हारे आनंद को पकड़ ले। अगर आज तुम दुख में जी रहे हो, और कल की आशा कर रहे हो सुख की, आशा से पैदा नहीं होगा कल, कल तो तुमसे पैदा होगा। तुम जैसे जी रहे हो उससे पैदा होगा। तुम्हारे अस्तित्व से पैदा होगा, तुम्हारे सपनों से नहीं।
समझो एक मां बीमार है और उसके गर्भ में एक बेटा है; और रुग्ण है, और शरीर जराजीर्ण है। बेटा तो इस जराजीर्ण, रुग्ण शरीर से पैदा होगा। मां चाहे सपने कितने ही देखती हो कि बेटा बड़ा स्वस्थ होगा, महावीर जैसा स्वस्थ होगा, इससे कुछ हल नहीं होने वाला। इस सपने से बेटा पैदा नहीं होने वाला। बेटा तो सचाई से पैदा होगा। तुम्हारा कल तुम्हारे सपने से पैदा नहीं होगा, तुम्हारे आज की असलियत से पैदा होगा, हकीकत से पैदा होगा।
तुम आज क्या हो। अगर तुम नाच रहे हो, तो तुमने आने वाले कल के लिए नाच दे दिया। अगर तुम प्रमुदित हो, प्रफुल्लित हो, तो कल का फूल खिलने ही लगा। क्योंकि जिस फूल को कल खिलना है, उसकी कली आज ही तैयार हो रही है। प्रतिपल तुम अगला पल पैदा कर रहे हो। प्रतिक्षण अगला क्षण तुम्हारे भीतर निर्मित हो रहा है, तैयार हो रहा है। तुम स्रष्टा हो। तुम अपने समय को खुद पैदा करते हो।
इसलिए मैं तो कहता हूं, आज जीओ। लेकिन तुम्हें लगता है वर्तमान जीने जैसा नहीं लगता। अगर वर्तमान जीने जैसा नहीं लगता, तो कल भी तो वर्तमान होकर ही आएगा। फिर वह भी जीने जैसा नहीं लगेगा। परसों भी वर्तमान होकर ही आएगा, वह भी जीने जैसा नहीं लगेगा। तो इसी को तो मैं आत्मघात करना कहता हूं। तब तो आत्महत्या कर रहे हो, जी नहीं रहे हो।
जीने का कोई और उपाय नहीं है। आज ही है, और आज ही जीना है। जीने जैसा लगे या न लगे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जीने का और कोई ढंग है ही नहीं। जीना तो यहीं होगा। कल के भुलावे में मत पड़ो। कल के भुलावों ने बहुतों को डुबाया है।
आज जीओ। यह क्षण खाली न चला जाए। यह क्षण अवसर है। इसे तुम ऐसे ही मत गंवा देना। कुछ बना लो इसका। कुछ रस ले लो इसमें। कुछ भोग लो इसे। कुछ पहचान लो इसे। इसका स्वाद उतर जाने दो तुम्हारे प्राणों में। यह ऐसा ही न चला जाए। क्योंकि अगर समय ऐसा ही जाता है तो समय को ऐसे ही चले जाने देने की आदत मजबूत होती चली जाती है। फिर धीरे-धीरे समय को गंवाना तुम्हारी प्रकृति हो जाती है। भोगो इसे। चूसो इस क्षण को, निचोड़ लो इसको पूरा, इसका रस जरा भी छूट न जाए। यही परमात्मा के प्रति धन्यवाद है। क्योंकि उसने तुम्हें अवसर दिया, जीवन दिया, और तुमने ऐसे ही गंवा दिया। परमात्मा तुमसे यह न पूछेगा…।
यहूदियों की किताब है–तालमुद। बड़ी अनूठी किताब है। दुनिया में कोई धर्मशास्त्र वैसा नहीं। तालमुद कहती है कि परमात्मा तुमसे यह न पूछेगा कि तुमने कौन-कौन सी गलतियां कीं। गलतियों का वह हिसाब रखता ही नहीं, बड़ा दिल है। परमात्मा तुमसे पूछेगा, तुम्हें इतने सुख के अवसर दिए तुमने भोगे क्यों नहीं? गलतियों की कौन फिकर रखता है? भूल-चूक का कौन हिसाब रखता है? वह तुमसे पूछेगा, इतने अवसर दिए सुख के, तुमने भोगे क्यों नहीं? तालमुद कहती है, एक ही पाप है जीवन में, और वह है जीवन के अवसरों को बिना भोगे गुजर जाने देना। जब तुम आनंदित हो सकते थे, आनंदित न हुए। जब गीत गा सकते थे, गीत न गाया। सदा कल पर टालते रहे, स्थगित करते रहे।
स्थगित करने वाला आदमी जीएगा कब? कैसे जीएगा? स्थगित करना ही तुम्हारे जीवन की शैली हो जाती है। बच्चे थे तब जवानी पर छोड़ा, जवान हो तब बुढ़ापे पर छोड़ोगे। और बुढ़ापे में लोग हैं, वे अगले जनम पर छोड़ रहे हैं। वे कह रहे हैं, परलोक में देखेंगे।
यही लोक है एकमात्र। और यही क्षण है। सत्य का यही क्षण है। बाकी सब झूठ है। मन का जाल है। लेकिन अगर तुम्हें अच्छा लगता है, तुम्हारी मर्जी। तुम्हें अच्छा लगता हो, तो मैं कौन हूं बाधा देने वाला? तुम सपने देखो। कभी न कभी तुम जागोगे, तब रोओगे, पछताओगे। तब तुम पछताओगे कि इतना समय यूं ही गंवाया। और ध्यान रखना जीवन में जितना दुख भर लोगे, जितने आंसू घने कर लोगे, जितना पछतावा हो जाएगा, उतना ही कठिन हो जाता है रोकना फिर दुख को, आंसुओं को।
कभी तुमने खयाल किया, हंसी तो एकदम रुक जाती है, रोना एकदम नहीं रुकता। तुम हंस रहे हो, एकदम रुक सकते हो। रोना एकदम नहीं रुकता।
थमते थमते थमेंगे आंसू
रोना है कुछ हंसी नहीं है
दुख ऐसा सराबोर कर लेता है, दुख ऐसी गहराइयों तक प्रविष्ट हो जाता है, तुम्हारी जड़ों तक समाविष्ट हो जाता है कि फिर तुम उसे रोकना भी चाहो तो कैसे रोको?
थमते थमते थमेंगे आंसू
रोना है कुछ हंसी नहीं है
यह कोई मजाक नहीं है कि रो लिए और रोक लिए। यह कोई हंसी नहीं है कि हंस लिए और रोक लिए। हंसी तो तुम्हारी ऊपर-ऊपर होती है, रुक जाती है। रोना बहुत गहरे चला जाता है। रोना तुम्हारे जीवन में सब तरफ भर जाता है, और रोज-रोज अगर तुम रोने को इस तरह सम्हालते गए, और जीने को कल पर टालते गए; तुमने कहा हंसेंगे कल, रोएंगे आज…और तुम जो दलील दे रहे हो वह दलील यह है कि अपना वर्तमान तो सुखद मालूम नहीं पड़ता, इसलिए सुखद सपने देखेंगे। सुखद वर्तमान क्यों नहीं है, यह पूछो। इसीलिए नहीं है कि कल भी तुमने सपने देखे थे आज के। और कल का दिन गंवा दिया जिसमें आज सुखद हो सकता था, जिसमें आज की आधारशिला रखी जा सकती थी। कल तुमने गंवा दिया, इसीलिए आज दुखद है। और तुम यही दलील दे रहे हो कि हम आज को भी गंवाएंगे, क्योंकि कल का सपना अच्छा मालूम पड़ता है।
तुम्हारी मर्जी। गणित साफ है। फिर मुझसे मत कहना कि हमें किसी ने चेताया नहीं। तुम्हें यह मौका न मिलेगा कहने का, यह ध्यान रखना, कि हमें किसी ने चेताया नहीं। दूसरों को तो यह भी सुविधा है कहने की कि उन्हें किसी ने चेताया नहीं। लेकिन मैं तुम्हें रोज चेता रहा हूं।
ओशो
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