केन उपनिषद्
पृष्ठ ३२
अध्याय ०७
ब्रह्माण्ड का रहस्योद् घाटन
हमने जीवन के दो पहलू देखे- एक व्यावहारिक चीज जो हम रोजमर्रा के जीवन में करते हैं और दूसरा अतींद्रिय चीजे जिसको थाम कर हम इस जीवन में चलते है । जैसे व्यावहारिक विज्ञान और शुद्ध विज्ञान ।शुद्ध विज्ञान के अनुसार मेज, कुर्सी या दरवाजा में कोई अंतर नहीं होता है क्योंकि सब एक ही पदार्थ के बने होते हैं । सभी में समान अणु होते हैं । लेकिन हम व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखे तो हम कुर्सी के स्थान पर मेज का उपयोग नहीं कर सकते है और इसी तरह दरवाजे के स्थान पर कुर्सी का उपयोग नहीं कर सकते हैं । भले ही दोनों एक ही पदार्थ के बने हों परंतु आप यह नहीं कह सकते है कि दोनों समान है या सब एक ही है । हाँ, दोनों एक ही है फिर भी भिन्न है । दोनों लकड़ी ही है फिर भी एक दूसरे से भिन्न हैं । आप दरवाजे पर बैठ नहीं सकते हैं या फिर दरवाजे के स्थान पर कुर्सी का प्रयोग नहीं हो सकता है । सब एक दूसरे से भिन्न हैं । तो अब तक हम व्यावहारिक पहलूओं पर विचार कर रहे थे अब हम अतींद्रिय पहलूओं को देखेंगे।क्या तुम इसके लिए तैयार हो ? श्रोता - हाँ ।
मानवविज्ञानी और जीवनविज्ञानी भी नर और मादा वृक्षों के विषय में जानते हैं । इसी तरह पत्थरों में भी लिंग होता है । पुरातन सभ्यता के लोग इस विषय में जानते थे। भारत के शिल्पकारों को नर और मादा पत्थरों की पहचान होती है । अमेरिका के मूल निवासियों को भी पत्थरों की पहचान होती है इसलिए वह पूजा के लिए पत्थरों का प्रयोग करते हैं ।कुवई (अफ्रीका) के लोगों को भी नर और मादा पत्थरों की पहचान होती है ।
पत्थरों में भी जीवन की एक इकाई उपस्थित होती है । जल में दो और अग्नि में जीवन की तीन इकाई होती है । ऐसी वायु, जिसमें बहुत सारे प्राणी होते हैं उसमें जीवन की चार इकाई और आकाश में जीवन की पाँच इकाई उपस्थित होती है । वृक्षों में जीवन की छ:, जानवरों में सात और मनुष्यों में जीवन की आठ इकाई होती है । इसलिए उन्हें अष्टवसु भी कहते हैं । अतिमानवीय और प्रतिभावान लोगों में जीवन की नौ इकाई होती है । ऐसे लोग जे असाधारण काम करते हैं, भले ही वह नकारात्मक हो जैसे हिटलर या वह लोग जो अमानवीय होते हैं, उनमें भी जीवन की नौ इकाई होतीहैं ।
उस तरह से देखें तो मानव के भीतर नौ से सोलह इकाई तक विकसित होने की क्षमता होती है । हमारी मृत्यु के पश्चात हमारी शक्ति और बढ़ जाती है । तब हमारी जीवन की इकाई नौ से दस के बीच होती है । यह अजीब लगता है परंतु सत्य है । इसीलिए पूर्वजों की उपासना की जाती है । जिस क्षण यह शरीर छूटता है - आत्मा मुक्त हो जाती है और उसकी संभावनायें बढ़ जाती है क्यों कि उसके लिए न कोई दीवार होती है न दरवाजा और न उसको कोई रोक सकता है, वह विचरण करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र होती है । जब हम जीवित होते हैं तो शरीर में जीवन की आठ इकाई होती है और तब ऐसा संभव नहीं होता है । मृत्यु के पश्चात यह इकाई बढ़ कर नौ या दस हो जाती है और तब तुम्हारी पहुँच और बढ़ जाती है । इसीलिए वह लोग जिनकी मृत्यु हो जाती है उनमें आशीर्वाद देने की क्षमता ज्यादा होती है क्योंकि उनकी आत्मा, शरीर में सीमित नहीं होती, वह मुक्त होती है । तुम उनसे प्रार्थना करो तो तुम्हें उनकी उपस्थिति का आभास होगा । तुम्हें वह कोई वरदान भी दे सकते हैं । सभी तो नहीं परंतु अपनी क्षमता के अनुसार उनमें आशीर्वाद देने की शक्ति होती है ।

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