होली कथा का अति सूक्ष्म सत्य है !!!
एक असुर राजा हिरण्यकश्यप चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें| परन्तु उसका अपना ही पुत्र ‘प्रह्लाद’ उस राजा के घोर शत्रु भगवान नारायण का परम भक्त था| इस बात से क्रोधित राजा अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रह्लाद से मुक्ति चाहता था| अग्नि में भी न जलने की शक्ति प्राप्त होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में ले कर जलती हुई आग (चिता) में बैठ गई| परन्तु इस आग में होलिका स्वयं जल गई और प्रह्लाद आग में से सही-सलामत बाहर निकल आया|
यहाँ हिरण्यकश्यप बुराई का प्रतीक है और प्रह्लाद निश्छलता, विश्वास एवं आनंद का| आत्मा को केवल भौतिक वस्तुओं के प्रति ही प्रेम रखने के लिए ही सिमित नहीं किया जा सकता| हिरण्यकश्यप भौतिक संसार से मिलने वाला समस्त आनंद चाहता था, पर ऐसा हुआ नहीं| किसी जीवात्मा को सदा के लिए भौतिकता में कैद नहीं रखा जा सकता|
इसका अंततः अपने उच्चतर स्व अर्थात नारायण की ओर बढ़ना स्वाभाविक है|
~ श्री श्री रविशंकर

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