प्रश्न : गुरूदेव मैं सोच रहा हूँ कि ये मन आखिर है क्या? क्या यह हमारे दिमाग में किसी एक जगह में है या यह पूरे जगत में व्याप्त है? हाँ, मैं यह भी कहना चाहता हूँ आप सर्वोत्तम हैं!
मन, ऊर्जा का स्वरूप है जो कि पूरे शरीर में व्याप्त है। हमारे शरीर के हर कोष से ऊर्जा प्रसारित होती है। आपके आस पास, पूरी ऊर्जा को सम्मिलित रूप से मन कहते हैं। मन, दिमाग के किसी एक भाग में नहीं स्थित है, अपितु शरीर में सभी जगह व्याप्त है।
चेतना विषयक ज्ञान बहुत गहरा है। हमें कभी कभी इस गहराई में जाना चाहिये। जितना गहराई में जायेंगे, उतना ही इसे समझ सकेंगे। जितना समझोगे, उतने ही चकित होते जाओगे! वाह!
तुम्हें पता लोगों का एक भूतिया हाथ होता है, जिसका अर्थ है कि सच में उनका हाथ नहीं है, पर उन्हें फिर भी उस हाथ में संवेदना होती है, पीड़ा और खुजली होती है! जो लोग अपना हाथ या पैर किसी दुर्घाटना वश खो देते हैं, उन्हें बाद में कभी कभी उस खोये हुये हाथ या पैर के अस्तित्व का अभास होता है। हालांकि वो सचमुच नहीं होता है। इस से ये साबित होता है कि मन, शरीर के किसी एक भाग में स्थित ना होकर, पूरे शरीर के इर्द गिर्द रहता है। शरीर का आभा-मण्डल ही मन है। हम सोचते हैं कि मन, शरीर के भीतर है, पर सत्य इसका उल्टा है - शरीर, मन के भीतर है। शरीर एक मोम्बत्ती की बाती की तरह है, और मन इसकी ज्योति है।
~ श्री श्री रविशंकर

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