आश्रम सत्संग
माया हमें कर्म से बांधती है, उसमें महामाया योग माया, मगर ज्ञानी उससे भेदन करते निकलता है।
मोह माया में चाह होती है कि मुझे यह चाहिए वह चाहिए, लोग हमें यह कहे, वह कहे, यह चाह होना, और जो बीत गया है भूतकाल में उसे पकड़ के रोते रहना यह मोह माया है।
और व्यक्ति वस्तु परिस्थिति बदलती रहती है।
महामाया:
महामाया माने घोर अंधेरे में बने रहना।
योग माया:
योग माया में व्यक्ति को अच्छा कर्म का लगाव रहना, भ्रम पैदा होना, सात्विकता का अहंकार होना, योग माया का तादात्म्य होना, उसमें व्यक्ति फसने से दुखी तो नहीं होता, मगर उन्हें मुक्ति नहीं मिलती।
मगर हमें सब कारण के कारण हार को ढूंढना चाहिए।
हमें जो भी मिलता है हमारे कर्म के कारण मिलता है।
हमारे सुख दुख का कारण किसी और को मत बोलो। और राग द्वेष मत करो।
इसलिए बोलते हैं शिव तुम्हारे वजह से यह सब कुछ हो रहा है, यह याद आते हि राग द्वेष नहीं होगा, फिर तुम भाई दुख से मुक्त हो जाओगे,
इसलिए कर्म को मत बांधो।
द्वेष का बीज व्यक्ति के अंदर घुसते ही आदमी क्या कर रहा है यह उन्हें पता भी नहीं चलता है।
गुरु की निंदा द्वेष नहीं सुननी चाहिए।
जिसको जो करना है करने दो, मगर तुम उनके कारण कर्म को मत बांधो।
उनकी गलती को बार-बार गूंदते मत रहो।
हमें हमारे मन में कुछ भी ठहरने ना देना चाहिए।
नहीं तो श्रंखला बनी रहती है इसलिए मुझे वह कहा मैंने यह कहां उसने वह कहा करके, तुम्हें जो मिलना है मिल कर रहेगा, चाहे इंद्र भी क्यों ना आए फिर भी आपका आपको मिलेगा यह दृढ़ आत्मनिष्ठा रखो।
व्यक्ति को दुखी भूतकाल ही तो करता है, असली भूत काल को ही मन में ढोते ढोते चलते रहोगे तो कैसे चलेगा।
आप गुरू के पास आए हो, तो सोचना ही नहीं सब छोड़ो।
और बार बार जागो यहपता चलते ही, कि यह माया के कारण हो रहा है, यह याद आते ही कर्म तुम्हें नहीं बांधेगा।
इसलिए कर्म हमे मत बंधौ।
और हमें जो भी समस्या जिसके पास जाने से सुलझेगी उसके पास ही जाकर सुलझाना चाहिए,बल्कि किसी के पास भी नहीं।
या फिर गुरु के पास जाकर ।
कई लोगोंको आदत होती है,जिंदगी भर अलग-अलग ए व्यक्तियों की आलोचना करते रहना
मगर अपने मन को देखो।
कई बार हम नकारात्मकता का आनंद लेने लगते हैं, किसी से बाहर निकलो।
और मन में बसे उन कर्मों को निकालो।
मरने से पहले मन को खाली करो।
शरणागति माने प्रेम में जो प्रार्थना उठती है वैसे ही शरणागति की भी उठती, होती है।
विचार के परे भाव है।
किसी भी ग्रंथ को देखे बिना व्याख्या करना गलत है, अलग-अलग ग्रंथ का अलग-अलग मत होता है, और वह अलग-अलग स्तर पर ठीक ही होता है।
कौन सी बात कहां और कब कहना यह विवेक है।
सबका अपना अपना समय होता है।
गुरुदेव क्या आप हमारे बारे में जानते हैं सब कुछ?
तुम्हें क्या लगता है मुझे नहीं पता, बताओ कितने लोगों को जो चाहे तुम्हें मिलते रहता है, देखो इतने सारे लोगों के हाथ ऊपर उठे, फिर पूछ लेना उनसे।
शादी में गोत्र देखा जाता है, भाई बहन उनके संबंधों में शादी नहीं होती,या गोत्र एक हो तभी नहीं, मगर दूर दूर हो, तो हो सकती है।
एकं ही परमात्मा है, वह अलग-अलग रूप में हैं।
हिंदू धर्म के यही विशेषता है उन्हें अलग-अलग रूप में मानते हैं।
श्री श्री...
आश्रम सत्संग
19/02/2018
🙏जयगुरूदेव🙏


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