प्रश्न - गुरूदेव कृपया वैराग्य, चिंतन और सूक्ष्म नाद पर आप प्रकाश डालिए ?
साधारणतया लोग वैराग्य का अर्थ उदासीनता समझते है वास्तव में वैराग्य ही आनंद है । वैराग्य है संपूर्ण आनंद । जब तुम कहते हो, " मुझे कुछ नहीं चाहिए ", इसका अर्थ हुआ कि तुम्हारे पास सब कुछ ही है, तुम्हें अभाव नहीं । वैराग्य है अपनी परिपूर्णता की पहचान और जो मिला हुआ है उसके लिए अहोभाव । वैराग्य है अभाव के भाव का अभाव और प्रेम से भरपूर होना; अस्तित्व में एक अटूट विश्वास कि अभी तक प्रत्येक आवश्यकता पूरी हुई और भविष्य में भी होती रहेगी । इस मनोस्थिति में ही वैराग्य का उदय होता है । मेरी बात समझ आई ।
अब कुछ परिस्थितियों का उदाहरण लेते हैं । एक परिस्थिति है, जहां इच्छा उत्पन्न ही नहीं होती । कुछ व्यक्ति अति सौभाग्यशाली होते हैं । उनके मन में इच्छाओं के उत्पन्न होने से पहले ही उनकी पूर्ति के साधन उपस्थित होते हैं । भूख से पहले भोजन, प्यास से पहले ही पानी का आयोजन हो चुका होता है । इच्छाओं के पनपने का क्षेत्र ही नहीं रहता । एक अन्य परिस्थिति सौभाग्यशाली व्यक्तियों की इच्छा उत्पन्न तो होती है परंतु उसकी पूर्ति भी शीघ्र ही हो जाती है ।
इच्छाओं की उत्पत्ति और उनकी संतुष्टि में अधिक समयांतर नहीं होता । एक बार एक व्यक्ति ने किसी संत से शिकायत की, " मैं इतना अभागा हूँ कि मेरी कोई भी इच्छा कभी भी पूरी नहीं होती ।" जानते हो संत ने क्या कहा ? संत ने कहा, " तुम्हारे मन में इच्छाओं का उठना ही दुर्भाग्य है ।" अत: इच्छाएं उठी ही नहीं तो तुम अति भाग्यवान, इच्छाएं उठी और शीघ्र ही पूरी हो गई तो तुम भाग्यवान, किंतु यदि देर से पूरी हुई तो तुम भाग्यहीन: और यदि कभी पूर्ण ही नहीं हुई तो तुम अति भाग्यहीन ।
~श्री श्री रविशंकर

THIS IS TO INFORM EVERYONE THAT EVERY INFORMATION PRESENT IN THIS WEBSITE IS COLLECTED FROM NON COPYRIGHT CONTENT AVAILABLE IN INTERNET.
No comments:
Post a Comment