आज विश्व-स्नेही बापदादा चारों ओर के विशेष बाप-स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। बाप का स्नेह और बच्चों का स्नेह दोनों एक-दो से ज्यादा ही है। स्नेह मन को और तन को अलौकिक पंख लगाए समीप ले आता है। स्नेह ऐसा रूहानी आकर्षण है जो बच्चों को बाप की तरफ आकर्षित कर मिलन मनाने के निमित्त बन जाता है। मिलन मेला चाहे दिल से, चाहे साकार शरीर से-दोनों अनुभव स्नेह की आकर्षण से ही होता है। रूहानी परमात्म-स्नेह ने ही आप ब्राह्मणों को दिव्य जन्म दिया। आज अभी-अभी रूहानी स्नेह की सर्चलाइट द्वारा चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों की स्नेहमयी सूरतें देख रहे हैं। चारों ओर के अनेक बच्चों के दिल के स्नेह के गीत, दिल का मीत बापदादा सुन रहे हैं। बापदादा सर्व स्नेही बच्चों को चाहे पास हैं, चाहे दूर होते भी दिल के पास हैं, स्नेह के रिटर्न में वरदान दे रहे हैं –
‘‘सदा खुशनसीब भव! सदा खुशनुमा भव। सदा खुशी की खुराक द्वारा तन्दरूस्त भव! सदा खुशी के खज़ाने से सम्पन्न भव!''
07.11.1989

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