प्रश्न: - गुरूजी, आपने हमें बताया है, कि रिश्ता कैसे बनाया जाता है| कृपया यह बताईये, कि रिश्ते से बाहर कैसे आया जाता है?
श्री श्री रवि शंकरजी : -आप तो उससे बाहर आ ही चुके हैं! जब आप उससे बाहर आना चाहते हैं, तो वह तो चला ही गया है, हो ही चुका है! है न?
असली बात है, कि आप अपना सम्बन्ध इस ब्रह्माण्ड और दैवियता से बना लें| अगर दैवियता से आपका रिश्ता है, तो आपका हर एक के साथ रिश्ता है| तब किसी के साथ रिश्ता जोड़ने या तोड़ने का सवाल ही नहीं उठता| रिश्ता तोड़ने की कोशिश में भी, कोई बुरी तरह फँस सकता है| जितना मन तोड़ने की कोशिश करता है, उतना ही वह उस रिश्ते में खिंचता है, और दर्द पाता है| आप न छोड़ना चाहते हैं, और न रहना चाहते हैं|
छोड़ने में आपको लगेगा जैसे कोई आराम छूट रहा है, और रहने में दर्द इतना होता है कि रहा नहीं जाता| इसलिए बेहतर है, कि सिर्फ ‘एक’ के साथ रिश्ता बनाया जाए| ऐसा करने से, बाकी सब के साथ अपने आप रिश्ता बन जाता है|
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