मैं गुरुजी के बारे में एक छोटी सी कहानी बताता हूँ। उन दिनों बैंगलोर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नहीं था। विदेश जाने के लिए दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता या चेन्नई जाना पड़ता था। यूरोप जाने के लिए तो दो ही विकल्प थे, मुम्बई या दिल्ली। उस दिन गुरुजी को पुणे सत्संग में जाना था तो वो डेक्कन क्वीन नाम की ट्रेन से पुणे से मुम्बई जा रहे थे। यह उस समय की सबसे समयबद्ध ट्रेन थी।
ट्रेन में एक लड़की थी जो कि पहली बार मुम्बई के लिए सफर कर रही थी। ट्रेन किसी कारण से लोनावला स्टेशन पर ४५ मिनट देरी से हो गयी। इस लड़की ने रोना शुरू कर दिया। वह डर गई कि यदि ट्रेन को मुम्बई पहुंचने में देरी हो गई तो जो रिश्तेदार उसे लेने आ रहे थे तो वापस चले जायेंगे और उसके पास कहीं जाने को नहीं रहेगा। एक वृद्ध व्यक्ति ने यह देखकर उसे कहा कि,"तुम घबराओ मत।अगर तुम्हारे रिश्तेदार नहीं आये तो मैं अपने यहाँ जाने से पहले तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा।"
वृद्ध व्यक्ति ने देखा कि लंबी काली दाढ़ी वाला यह अजनबी व्यक्ति(गुरुदेव), उनके साथ बैठे केवल मुस्कुरा रहा है। उस वृद्ध व्यक्ति ने गुरुजी से पूछा कि,"क्या आपको ट्रेन की देरी की कोई चिंता नहीं है ? आपको कहाँ जाना है ?" गुरुदेव ने कहा," मुझे मुम्बई पहुंचने के बाद यूरोप के लिये फ्लाइट पकड़नी है।" वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि,"अगर ट्रेन देर से पहुँची तो आप क्या करेंगे ?" गुरुजी ने आराम से कहा कि,"तब मैं नहीं जाऊंगा। यदि ट्रेन समय से पहुंचेगी तो मैं जाऊंगा और यदि देर से पहुँचेगी तो नहीं जाऊँगा।"
वो वृद्ध व्यक्ति पूरी तरह असमंजस में पड़ गया कि कैसे कोई व्यक्ति जिसे अंतरराष्ट्रीय उड़ान पकड़नी हो वो ऐसी परिस्थिति में भी शांत व प्रसन्न रह सकता है!!
जब तुम भगवान को प्राप्त करते हो, तब इससे क्या फर्क पड़ता है कि चीजें घटें या न घटें। क्योंकि सब कुछ प्राप्त करने के बाद भी आखिरी उद्देश्य भगवान की प्राप्ति ही है।
ऋषि विद्याधर
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