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*🌺पतंजलि योग सूत्र🌺*
*🌲प्रथम चरण🌲*
*🌳योग के अनुशासन🌳*
🌹🌹4⃣🌹🌹
*कल से आगे.....*
तुमने देखा होगा ग्रामीण व्यक्ति,सरल व निश्छल लोग अथवा बच्चे, चलचित्र देखते समय, उसमे इतना डूब जाते हैं कि उनके समक्ष फिल्म के अतिरिक्त कुछ भी अस्तित्व में नही रहता। तुमने अनुभव किया होगा कि बिना श्रम किये ही तुम्हे पीठ का दर्द, पैरों में पीड़ा एवं भाँती-भाँती के कष्ट रहते हैं, किंतु एक फिल्म देखते समय तुम्हे लेशमात्र भी दर्द नही होता, अपने शरीर की अनुभूति भी समाप्त हो जाती है। अगर फिल्म दिलचस्प है तो तुम्हे यह भी याद नहीं रहता की तुम बैठे भी हो। तुम्हारी चेतना फिल्म में दिखने वाले दृश्यों व स्वरूपों के साथ एकाकार हो जाती है। उन घटनाओं को कल्पनाओं में सच मान लेती है।
एक गॉंव में एक फिल्म दिखायी जा रही थी। दर्शकों ने देखा कि फिल्म का खलनायक, नायक को यातनाएँ दे रहा है। दर्शक उसे सच समझ लाठियाँ एवं पत्थर लेकर फिल्म के पर्दे की ओर दौड़े। भारत में एक बार नाटक के मंचन के समय, एक सज्जन खलनायक के काम को देखकर, क्रोध से पागल हो गये और उन्होंने अपनी चप्पल उतार कर उसे दे मारी। उस कलाकार ने; जो खलनायक की भूमिका में था, उन चप्पलों को बड़े आदर से उठाकर रख लिया और कहा कि ये मेरे लिए"सम्मान सूचक" है अर्थात् एक पुरस्कार की भाँती है। ये इस बात का प्रमाण है कि मैं अपने अभिनय में सफल रहा। हमारी चेतना सामने दिखने वाले दृश्यों को सच मानकर उसके साथ आत्मसात हो जाती है।
योग का उद्देश्य अपने आप में स्थापित होकर, समग्रता व सम्पूर्णता को प्रदान करना है। यह तुम्हे अखण्ड बनाता है। इस समय तुम मेरी ओर देख रहे हो। अपने नेत्रों पर ध्यान दो, जिनके द्वारा तुम मुझे देख रहे हो।
*क्या तुम्हारा ध्यान उन पर है?*
ध्यान दो! वास्तव में तुम्हारा मस्तिष्क, नेत्रों द्वारा मुझे देख रहा है। अब कुछ क्षणों के लिए अपनी आँखें बंद करो, उन्हें महसूस करो और अपना ध्यान अपने मन पर ले जाओ, फिर अपने हृदय एवं अपने अस्तित्व के केन्द्र बिंदु पर ध्यान टीकाओं।
विश्राम करो! वहींपर विश्राम करो। इस क्षण न तुम कुछ देखना चाहते हो, न सुनना, न किसी सुगंध में तुम्हे कोई रूचि है, न ही स्वादिष्ट भोजन में और न ही स्पर्श में।अपने चित्त्त को, पाँचो इन्द्रियों से हटाकर अपने अस्तित्व के केन्द्र बिंदु पर लाकर, विश्राम करो।
*....शेष कल....*v
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🌺. जय गुरुदेव ,🌺
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