भगवान या गुरुदेव से कुछ माँगना ठीक है परंतु जिस दिन तुम सत्य को जान जाओगे तो तुम कुछ भी माँगना छोड़ दोगे, उसी दिन तुम भगवान को पा लोगे। इसके लिए थोड़े साहस की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि आपका मन आपकी नहीं सुनेगा। तुम अपने व्यापार के लिए, परिवार के लिए या खुद के लिए कुछ माँगना चाहोगे। कुछ तर्क आयेगा जो कहेगा, "यह पहले जरूरी है। मुझे व्यापार में स्थापित होने दो। पहले मुझे पैसे कमाने दो"। आपकी बुद्धिमत्ता आपको कुछ माँगना छोड़ने की अनुमति नहीं देगी।
जब हम विद्यालय जाते हैं तो शिक्षक, हमारी बुद्धिमत्ता को और परिपक्व करने के लिए हमें 'शिक्षा' देते हैं, जो कि बाहरी जगत का ज्ञान है कि "यह क्या है?" पर जब गुरु के पास जाते हैं तो वो 'दीक्षा' देते हैं, जो कि यह ज्ञान देती है कि "मैं कौन हूँ?"
ऋषि विद्याधर
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