प्रश्न : गुरूदेव इस दुनिया में हमारा अस्तित्व क्या है ?
श्री श्री : यह दुनिया इतनी विशाल है, इसमें तुम्हारा अस्तित्व क्या है ? कुछ भी नहीं है। यहाँ तो करोड़ों लोग आये, जीये, चल बसे। ऐसे ही तुम भी चले जाओगे। इस बीच तुम किसी को क्या साबित करने जा रहे हो ? तुम्हारी निपुणताएँ साबित करने जा रहे हो ? मैं भी कुछ हूँ ? क्या हो तुम ? करोड़ों वर्षों से दुनिया चली आ रही है, और चलती चलेगी-कभी हँसेंगे, रोयेंगे, कूदेंगे, खुशी मनायेंगे, मारेंगे, पीटेंगे...खत्म ही हो जायेंगे। इस बीच में ‘‘मैं कुछ हूँ, मैं करके दिखाऊँगा’’ - किसको क्या दिखाने जा रहे हैं आप ? यह जो मन में भावना उठती है न, ‘‘करके दिखाऊँगा,’’ इससे बड़ी भूल और कुछ नहीं। यही मूल कारण है तनाव का। सहज हो जाओ, ढीले हो जाओ, प्रेम से सबसे मिलो, सब के साथ एकता महसूस करो। जैसे तुम मनुष्य हो, वे भी मनुष्य हैं, इस दृष्टि से देखो, तब तुम्हारे भीतर फैलाव होता है, तुम्हारे जीवन में विस्तार होता है। जीवन के प्रति तुम्हारी दृष्टि विकसित होती है।
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