(३) सैद्धांतिक विवेचन
पात्रता की शर्त पूरी होने पर शिष्य के सामने पहले सृष्टि रचना का सैद्धांतिक विवेचन करता है जिससे शिष्य इस सम्पूर्ण सृष्टि-रहस्य को हृदयंगम कर ले।
इसके बाद वह साधना के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालता है। इससे शिष्य की रूचि जाग्रत होकर वह ध्यानस्थ हो जाता है। ध्यान द्वारा जब वह पूर्ण ज्ञान-ग्राहक की स्थिति में आ जाता है तब गुरु उसे अंतिम एवं सर्वोच्च आध्यात्मिक सत्य को उसके सामने प्रगट करता है जिसे वह तत्काल ग्रहण कर लेता है जिससे उसका समस्त अज्ञान एवं भ्रान्ति दूर होकर वह आत्मज्ञान के आलोक से आलोकित हो जाता है। शिष्य को इस स्थिति में पहुँचा देना ही गुरु का उद्देश्य होता है। इसमें शिष्य के साथ गुरु भी अपनी सफलता मानता है।
(४) प्रयोग विधि
जिस प्रकार एक विज्ञान का अध्यापक अपने छात्रों को सैद्धांतिक विवेचन करने के बाद उसकी सत्यता सिद्ध करने के लिए प्रयोगशाला में विद्यार्थी से विभिन्न प्रयोग करवाता है जिससे छात्र उसकी सत्यता को स्वयं देख सके , उसी प्रकार इस ग्रन्थ में हर सिद्धांत का गुरु ने प्रयोगात्मक पक्ष भी राम के सामने विभिन्न उपाख्यानों द्वारा रख कर यह सिद्ध किया की ये सिद्धांत विभिन्न व्यक्तियों पर किस प्रकार घटित हुए। इस प्रकार शिष्य के सन्मुख यह ज्ञान कोरा सैद्धांतिक ज्ञान न होकर प्रयोग सिद्ध होने से पूरी तरह हृदयंगम हो जाय।
|| जय गुरुदेव ||
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