वास्तु शास्त्र और आपके व्यवसाय स्थल की भौगोलिक स्थिति आपके व्यवसाय को प्रभावित करती है। वास्तुकला के अनुरुप अपना वाणिज्यिक स्थल का चुनाव करें। अपने व्यवसायिक भवन या कमरे के निर्माण में उसके स्थानिक ज्यामितीय संरचना के ध्यान रखे। इसके साथ हमें जल, अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वी तत्व के अपने भवन में समुचित उपयोग को भी ध्यान में रखना चाहिए। व्यवसाय की सफलता के लिए 15 वास्तु सुझाव :
सफल व्यवसाय के लिए वास्तु शास्त्र अनुरुप कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देश :
सफल व्यवसाय के लिए वास्तु शास्त्र अनुरुप कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देश :
१) अगर आप अपने कार्यालय या उद्योग धंधे के लिए भूमि खरीदना चाहते है। तो इस बात का ध्यान रखे कि वो भूखण्ड सिंहमुखी हो। सिंहमुखी का तात्पर्य हुआ जमीन का फ्रंट फेस बैक फेस से चौणा होना चाहिए।
२) निर्माण किये जाने वाले भवन कार्यस्थल का मुंह पूर्व की दिशा में, या उत्तर पूर्व की दिशा में होना चाहिए। ये दिशाएं सकारात्मक ऊर्जा की संचार करती हैं।
३) वास्तु शास्त्र के नियमानुसार उद्योग भवन का मुख्य द्वार पूर्व और उत्तर दिशा की तरफ खुलना चाहिए, और मुख्य द्वार पर कोई अवरोध नहीं होना चाहिए।
४) व्यवसायिक भवनों के स्वागत कक्ष भवन के पूर्व दिशा में या उत्तर पूर्व दिशा में कोण पे होने चाहिए।
५) व्यवसायिक भवन के मुख्य केंद्रीय भाग को खाली रखना चाहिए। यह स्थान ब्रम्ह स्थान कहा जाता है।
६) उद्योगपति का कक्ष दक्षिण पश्चिम की दिशा में होनी चाहिए, और उसे उत्तर दिशा की तरफ मुंह कर के बैठना चाहिए। स्वामी के सीट के पीछे किसी प्रकार की मूर्ति और मंदिर नहीं होना चाहिए। व्यवसाय के स्वामी के पीछे कंक्रीट की दीवाल होनी चाहिए न की कांच की। उनके मेज आयताकार होने चाहिए।
७) कर्मचारियों को उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके काम करना चाहिए।
८) अधिक आर्थिक सहायता के अनुकूल सकारात्मक ऊर्जा के लिए, व्यवसाय स्थल के उत्तर पश्चिम का भाग को धन स्रोत अवरोधक ततवों से मुक्त रखना चाहिए। इस दिशा में शौचालय आदि का निर्माण नहीं करना चाहिए। श्वेत अस्वा आर्थिक प्रगति के सूचक माने जाते हैं, अतः इन्हे उत्तर पश्चिम दिशा की तरफ रखना चाहिए।
९) लेखा जोखा का विभाग भवन के उत्तर पूर्व दिशा की तरफ होनी चाहिए। बैंक और धन के लेन देन रखने वाले कर्मचारियों को उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ मुंह कर के बैठना चाहिए। वित्तीय आंकड़ों से सम्बंधित फइलें उत्तर मध्य या उत्तर पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए।
१०) व्यवसाय धन के लेन दें से चलता है। वास्तु शास्त्र को अनुसरण कर हम इस प्रक्रिया को अपने अनुकूल बना सकते हैं। भवन के उत्तरी हिस्सों के दीवालों को लाल या गुलाबी रंग से नहीं रंगवाना चाहिए और इस हिस्से में भोजनालय भी नहीं रखना चाहिए। इसी तरह दक्षिण पूर्व की दिशा को नीले रंग से मुक्त रखना चाहिए। इस दिशा में हरे पौधे रखने चाहिए।
११) सम्मलेन कक्ष भवन के उत्तर पश्चिम दिशा की तरफ होना चाहिए।
१२) उत्तर पूर्व दिशा में एक्वेरियम रख सकते हैं।१३) कार्यस्थल पर डेस्क आयताकार या वर्गाकार होने चाहिए।
१४) विजली सम्बन्धी सारे उपकरण दक्षिण पूर्व दिशा में यानि अग्नि कोण पर होने चाहिए
१५) यदि आपका व्यवसाय वस्तु उत्पादन से सम्बन्ध रखता है। इसकी शुरुआत दक्षिण दिशा से होते हुए उत्तर पश्चिम होते हुए अंत में पूर्व दिशा की ओर जानी चाहिए।

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