27-06-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे– विकर्मों से बचने के लिए घड़ी-घड़ी अशरीरी बनने की प्रैक्टिस करो, यह प्रैक्टिस ही माया जीत बनायेगी, स्थाई योग जुटा रहेगा”
प्रश्न:
कौन सा निश्चय यदि पक्का हो तो योग टूट नहीं सकता?
उत्तर:
सतयुग त्रेता में हम पावन थे, द्वापर कलियुग में पतित बने, अब फिर हमें पावन बनना है, यह निश्चय पक्का हो तो योग टूट नहीं सकता। माया हार खिला नहीं सकती।
गीत:
जो पिया के साथ है…
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे इस गीत का अर्थ समझ गये। उस बरसात की तो बात नहीं है। वह जो सागर वा नदियां हैं उनकी बात नहीं है। यह है ज्ञान सागर, वह आकर ज्ञान बरसात बरसाते हैं, तो अज्ञान अन्धियारा दूर हो जाता है। यह कौन समझते हैं? जो अपने को प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारी समझते हैं। बच्चे जानते हैं हमारा बाप शिव है, वह हो गया हम सब बी.के. का दादा, सो भी निराकार। जबकि तुम निश्चय करते हो हम प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं तो फिर यह भूलने की बात ही नहीं। सभी बच्चे पिया के साथ हैं। ऐसे नहीं कि सिर्फ तुम हो, मुरली तो सब सुनेंगे। बच्चों के लिए ही ज्ञान बरसात है, जिस ज्ञान से घोर अन्धियारे का विनाश हो जाता है। तुम जानते हो हम घोर अन्धियारे में थे, अब रोशनी मिली है तो सब जानते जा रहे हो। परमपिता परमात्मा की बॉयोग्राफी को तुम जानते हो। जो शिवबाबा की बॉयोग्राफी को नहीं जानते वह हाथ उठाओ। सब जानते हैं परमात्मा की जीवन कहानी। सो भी एक जन्म की नहीं। शिवबाबा की कितने जन्मों की बॉयोग्राफी है? तुमको मालूम है? तुम जानते हो शिवबाबा का इस ड्रामा में क्या पार्ट है। आदि से अन्त तक उनको और उनकी बॉयोग्राफी को जानते हो। बरोबर भक्ति मार्ग में जो जिस भावना से भक्ति करते हैं उनका एवजा मुझे देना होता है। वह चैतन्य तो है नहीं, साक्षात्कार मैं ही कराता हूँ। तुम जानते हो आधाकल्प भक्ति मार्ग चलता है। भक्ति की मनोकामनायें पूरी हुई, अब फिर बच्चे बने हैं उनको तो जरूर वर्सा मिलेगा। बाप बच्चों को वर्सा देते हैं, यह कायदा है। तुम्हारा अभी सद्गति तरफ मुख है। तुम मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल वतन को जानते हो। कौन इस बेहद ड्रामा में मुख्य एक्टर्स हैं। क्रियेटर और फिर डायरेक्टर रचता है और करनकरावनहार है। डायरेक्शन देते हैं ना। पढ़ाते भी हैं। कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखाने आया हूँ। यह भी कर्म करना हुआ ना और कराते भी हैं। आधाकल्प तुम माया के वश असत्य कर्तव्य करते आये हो। यह है हार-जीत का खेल। माया तुम्हारे से असत् कर्तव्य कराती आई है। असत् कर्तव्य कराने वाले को भगवान कैसे कह सकते? भगवान कहते हैं मैं तो एक ही हूँ, जो सबको सत् कर्म करना सिखलाता हूँ। अभी सबकी कयामत का समय है। सबको कब्र से जगाना है। यह सब कब्रदाखिल हैं। बाप आकर जगाते हैं। मौत सामने खड़ा है। शिवबाबा ब्रह्मा तन द्वारा हमको सब समझा रहे हैं। तुम सबकी बॉयोग्राफी, शिवबाबा की भी बॉयोग्राफी जानने वाले बन गये हो। तो ऊंच ठहरे ना। जो शास्त्र बहुत अध्ययन करने वाले होते हैं, उनके आगे न जानने वाले माथा टेकते हैं। तुमको माथा नहीं टेकना है। है बिल्कुल सहज बात। बच्चे समझते हैं हम मूलवतन, शान्तिधाम के रहवासी बनेंगे, फिर सुखधाम में आयेंगे। अभी हम प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारी हैं। शिवबाबा के हम पोत्रे हैं। शिवबाबा को याद करने से हमको सुख का वर्सा मिलेगा। तुम बच्चों को निश्चय है कि हम पवित्र थे फिर पतित बने अब फिर हमें पावन बनना है। अगर निश्चय नहीं होगा तो योग भी नहीं लगेगा, पद भी नहीं पा सकेंगे। पवित्र जीवन तो अच्छी है ना। कुमारियों का बहुत मान है क्योंकि इस समय तुम कुमारियाँ बहुत ही सर्विस करती हो ना। अभी तुम पवित्र रहती हो, अभी की पवित्रता भक्ति मार्ग में पूजी जाती है। यह दुनिया तो बड़ी गन्दी है, कीचक की कहानी है ना। मनुष्य बहुत गन्दे विचार रखकर आते हैं, उनको कीचक कहा जाता है इसलिए बाबा कहते हैं बड़ी सम्भाल रखनी है। बहुत गन्दी कांटों की दुनिया है। तुमको तो बहुत खुशी होनी चाहिए। हम शान्तिधाम में जाकर फिर सुखधाम में आयें। हम सुखधाम के मालिक थे फिर चक्र लगाया है। यह तो निश्चय होना चाहिए ना। अशरीरी बनने की आदत डालनी है, नहीं तो माया खाती रहेगी, योग टूटा हुआ रहेगा, विकर्म विनाश नहीं होंगे। कितनी मेहनत करनी चाहिए याद में रहने की। याद से ही एवर-हेल्दी बनेंगे। जितना हो सके अशरीरी बन बाप को याद करना है। हम आत्माओं को बाप परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं। कल्प-कल्प पढ़ाते हैं, राज्य- भाग्य देते हैं। तुम योगबल से अपनी राजधानी स्थापना करते हो। राजा-राज्य करते हैं, सेना राज्य के लिए लड़ती है। यहाँ तुम अपने लिए मेहनत करते हो, बाप के लिए नहीं। मैं तो राज्य ही नहीं करता हूँ। मैं तुमको राज्य दिलाने लिए युक्तियां बताता हूँ। तुम सब वानप्रस्थी हो सबका मौत है। छोटे-बड़े का कोई हिसाब नहीं। ऐसे नहीं समझना छोटा बच्चा होगा तो उनको बाप का वर्सा मिलेगा। यह दुनिया ही नहीं रहेगी जो पा सके। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। खूब पैसा कमाने की इच्छा रखते हैं, समझते हैं हमारे पुत्र-पौत्रे खायेंगे। परन्तु यह कामना किसी की पूर्ण नहीं होगी। यह सब मिट्टी में मिल जाना है। यह दुनिया ही खत्म होनी है। एक ही बॉम्ब लगा तो सब खत्म हो जायेंगे। निकालने वाला कोई नहीं। अभी तो सोने आदि की खानियां बिल्कुल खाली हो गयी हैं। नई दुनिया में वह फिर सब भरतू हो जायेंगी। वहाँ नई दुनिया में सब कुछ नया मिल जायेगा। अभी ड्रामा का चक्र पूरा होता है, फिर शुरू होगा। रोशनी आ गई है। गाते हैं ज्ञान सूर्य प्रकटा, अज्ञान अन्धेर विनाश। उस सूर्य की बात नहीं, मनुष्य सूर्य को पानी देते हैं। अब सूर्य तो पानी पहुंचाता है सारी दुनिया को। उनको फिर पानी देते हैं, वन्डर है भक्ति का फिर कहते हैं सूर्य देवताए नम:, चांद देवताए न् म:। वह फिर देवताएं कैसे होंगे? यहाँ तो मनुष्य असुर से देवता बनते हैं। उनको देवता नहीं कह सकते। वह तो सूर्य, चादं सितारे हैं। सूर्य का भी झण्डा लगाते हैं। जापान में सूर्यवंशी कहते हैं। वास्तव में ज्ञान सूर्यवंशी तो सब हैं। परन्तु नॉलेज नहीं है, अब कहाँ वह सूर्य, कहाँ यह ज्ञान सूर्य। यहाँ भी यह साइन्स की इन्वेन्शन निकालते हैं, फिर भी नतीजा क्या होता है! कुछ भी नहीं। विनाश को पाया कि पाया। सेन्सीबुल जो होते हैं वह समझते हैं इस साइन्स से अपना ही विनाश करते हैं। उन्हों की है साइन्स, तुम्हारी है साइलेन्स। वह साइन्स से विनाश करते हैं, तुम साइलेन्स से स्वर्ग की स्थापना करते हो। अभी तो नर्क में सबका बेड़ा डूबा हुआ है। उस तरफ वह सेनायें, इस तरफ तुम हो योगबल की सेना। तुम सैलवेज करने वाले हो। कितनी तुम्हारे ऊपर रेसपॉन्सिबिल्टी है, तो पूरा मददगार बनना चाहिए। यह पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है। अभी तुम ड्रामा को समझ गये हो। अभी संगम का टाइम है। बाप बेड़ा पार करने आये हैं। तुम समझते हो राजधानी पूरी स्थापना हो जायेगी फिर विनाश होगा। बीच-बीच में रिहर्सल होती रहेगी। लड़ाईयाँ तो ढेर लगती रहती हैं। यह है ही छी-छी दुनिया, तुम जानते हो बाबा हमको गुल-गुल दुनिया में ले चलते हैं। यह पुराना चोला उतारना है। फिर नया चोला पहनना है। यह तो बाप गैरन्टी करते हैं कि हम कल्प-कल्प सभी को ले जाता हूँ, इसलिए मेरा नाम कालों का काल महाकाल रखा है। पतित-पावन, रहमदिल भी कहते हैं। तुम जानते हो हम स्वर्ग में जाने का पुरूषार्थ कर रहे हैं, श्रीमत पर। बाबा कहते मुझे याद करो तो मैं तुमको स्वर्ग में भेज दूंगा, साथ-साथ शरीर निर्वाह भी करना है। कर्म बिना तो कोई रह न सके। कर्म सन्यास तो होता नहीं। स्नान आदि करना, यह भी कर्म है ना। पिछाड़ी में सब पूरा ज्ञान लेंगे, सिर्फ समझेंगे कि यह जो कहते हैं कि शिवबाबा पढ़ाते हैं, यह ठीक है, निराकार भगवानुवाच– वह तो एक ही है इसलिए बाबा कहते रहते हैं सबसे पूछो निराकार शिव से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? सब ब्रदर्स हैं तो ब्रदर्स का बाप तो होगा ना। नहीं तो कहाँ से आये। गाते भी हैं तुम मात-पिता…। यह है बाप की महिमा, बाप कहते हैं मैं ही तुमको सिखलाता हूँ। तुम फिर विश्व के मालिक बनते हो। यहाँ बैठे भी शिवबाबा को याद करना है। इन आंखों से तो शरीर को देखते हैं, बुद्धि से जानते हैं हमको पढ़ाने वाला शिवबाबा है। जो बाप के साथ हैं उसके लिए ही यह राजयोग और ज्ञान की बरसात है। पतितों को पावन बनाना– यह बाप का काम है। यह ज्ञान सागर वही है, तुम जानते हो हम शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा के बच्चे हैं। ब्रह्मा का बाप है शिव, वर्सा शिवबाबा से मिलता है। याद भी उनको करना है। अभी हमको जाना है विष्णुपुरी। यहाँ से तुम्हारा लंगर उठा हुआ है। शूद्रों की बोट (नांव) खड़ी है। तुम्हारी बोट चल पड़ी है। अभी तुम सीधा घर चले जायेंगे। पुराना कपड़ा सब छोड़ जाना है। अभी यह नाटक पूरा होता है, अब कपड़ा उतार जायेंगे घर। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कोई भी असत् कर्म नहीं करना है, मौत सामने खड़ा है, कयामत का समय है इसलिए सबको कब्र से जगाना है। पावन बनने और बनाने की सेवा करनी है।
2) इस छी-छी दुनिया में कोई भी कामनायें नहीं रखनी है। सबके डूबे हुए बेड़े को सैलवेज करने में बाप का पूरा मददगार बनना है।
वरदान:
ब्राह्मण जीवन में सदा सुख देने और लेने वाले अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी भव
जो अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी हैं वे सदा बाप के साथ सुखों के झूलों में झूलते हैं। उन्हें कभी यह संकल्प नहीं आ सकता कि फलाने ने मुझे बहुत दु:ख दिया। उनका वायदा है– न दु:ख देंगे, न दु:ख लेंगे। अगर कोई जबरदस्ती भी दे तो भी उसे धारण नहीं करते। ब्राह्मण आत्मा अर्थात् सदा सुखी। ब्राह्मणों का काम ही है सुख देना और सुख लेना। वे सदा सुखमय संसार में रहने वाली सुख स्वरूप आत्मा होंगी।
स्लोगन:
नम्र बनो तो लोग नमन करते हुए सहयोग देंगे।
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