जिसे प्रार्थना करनी हो तो वह कहीं भी कर लेगा। जिसे प्रार्थना करने का ढंग आ गया, सलीका आ गया, वह जहां है वहीं कर लेगा। यह सारा ही संसार उसका है, उसका ही मंदिर है, उसकी ही मस्जिद है।हर चट्टान में उसी का द्वार है! और हर वृक्ष में उसी की खबर है! कहां जाना है और? भक्त तो कहता है, अब क्या मंदिर और मस्जिद की खाक छानूं तेरी गली में रहकर मर जाएंगे, बस पर्याप्त है। और सभी तो गलियां उसकी हैं।
मैं यह नहीं कहा रहा हूं, मंदिर मत जाना। क्योंकि मंदिर भी उसका है, चले गए तो कुछ हर्ज नहीं। क्योंकि जहां तुम बैठे हो, वह जगह भी उसी की है। उससे खाली तो कुछ भी नहीं।यह स्मरण आ जाए तो जब आंख बंद कीं, तभी मंदिर खुल गया; जब हाथ जोड़े तभी मंदिर खुल गया जहां सिर झुकाया वहीं उसकी प्रतिमा स्थापित हो गई!
झेन फकीर इक्यू एक मंदिर में ठहरा था। रात सर्द थी, बड़ी सर्द थी! तो बुद्ध की तीन प्रतिमाएं थीं लकड़ी की, उसने एक उठाकर जला दी। रात में ताप रहा था आच, मंदिर का पुजारी जग गया आवाज सुनकर, और आग और धुआ देखकर। वह भागा हुआ आया। उसने कहा, “यह क्या किया? “ देखा तो मूर्ति जला डाली है। तो वह विश्वास ही न कर सका। यह बौद्ध भिक्षु है और इसी भरोसे इसको ठहर जाने दिया मंदिर में और यह तो बड़ा नासमझ निकला, नास्तिक मालूम होता है। तो बहुत गुस्से में आ गया। उसने कहा, “तूने बुद्ध की मूर्ति जला डाली है! “ भगवान की गतइr जला डाली है! “
तो इक्यू बैठा था, राख तो हो गई थी, मूर्ति तो अब राख थी। उसने बड़ी एक लकड़ी उठाकर कुरेदना शुरू किया राख को। उस पुजारी ने पूछा, “अब क्या कर रहे हो? “ तो उसने कहा कि मैं भगवान की अस्थियां खोजता हूं। वह पुजारी हंसने लगा। उसने कहा, “तुम बिलकुल ही पागल हो–लकडी की गतइr में कहें अस्थियां हैं”! तो उसने कहा, “फिर ऐसा करो, अभी दो मूर्तियां और हैं, ले लाओ। रात बहुत बाकी है और रात बड़ी सर्द है, और भीतर का भगवान बड़ी सर्दी अनुभव कर रहा है”।
पुजारी ने तो उसे निकाल बाहर किया क्योंकि कहीं यह और न जला दे। लेकिन उस सुबह पुजारी ने देखा कि बाहर वह सड़क के किनारे बैठा है और मील का जो पत्थर लगा है, उस पर उसने दो फूल चढ़ा दिए हैं और प्रार्थना में लीन है! तो वह गया और उसने कहा कि पागल हमने बहुत देखे हैं, लेकिन तुम भी गजब के पागल हो! रात गतइr जला दी भगवान की, अब मील के पत्थर की पूजा कर रहे हो! उसने कहा, “जहां सिर झुकाया वहीं गतइr स्थापित हो जाती है
मूर्ति, मूर्ति में तो नहीं है, तुम्हारे सिर झुकाने में है। और जिस दिन तुम्हें ठीक-ठीक प्रार्थना की कला आ जाएगी, उस दिन तुम मंदिर- मस्जिद न खोजोगे–उस दिन तुम जहां होओगे, वहीं मंदिर-मस्जिद होगा, तुम्हारा मंदिर, तुम्हारी मस्जिद तुम्हारे चारों तरफ चलेगी, वह तुम्हारा प्रभामंडल हो जाएगा।जहां-जहां भक्त पैर रखता है, वहीं- वहीं एक काबा और निर्मित हो जाता है। जहां भक्त बैठता है, वहां तीर्थ बन जाते हैं। तीर्थों में थोड़े ही भगवान मिलता है, जिसको भगवान मिल गया है, उसके चरण जहां पड़ जाते हैं वहीं तीर्थ बन जाते हैं। ऐसे ही पुराने तीर्थ बने हैं।

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