प्रश्न : आध्यात्मिक पथ पर साधक निराकार, साकार के बीच भटक सकता है, ध्यान में मंत्र या विपासना...किसी रास्ते पर जाकर फिर ये समझना कि उसके लिये दूसरा रास्ता सही होता, इस में साधक का समय नष्ट हो सकता है?
श्री श्री : देखो, सभी संभावनाये हैं। ऐसा नहीं है कि जो लोग साकार उपासना में जाते हैं, उन्हें प्राप्ति नहीं होती है। उनकी प्राप्ति के लाखो उदाहरण हैं। इस देश में हज़ारों संत, साकार से निराकार तक पंहुच गये। अगर हम तुलसी रामायण देखें तो जो तुलसी जी ने लिखा है, ‘राम निरंजन अरूप,’ ये अनुभव के बिना नहीं कह सकते थे। पहले वे राम को एक व्यक्ति के रूप में देखते हैं, फिर उन्होंने पाया कि राम का सार निराकार है। उसी तरह, असीसी के सेंट फ़्रांसिस भी साकार से निराकार में आये। मीरा साकार से निराकार तक पहुंच गई। गुरु नानक देव...। इस देश में ऐसे कई उदाहरण हैं कि जहां साधक की लगन सच्ची है तो कभी गलती नहीं होती। ऐसा मेरा मानना है। क्योंकि प्रकृति तुम्हारा मार्गदर्शन करेगी।
देखों वह व्यापक बुद्धि, परमात्मा कभी आपका साथ नहीं छोड़ते। वो आपको सही रास्ते पर ले जाते हैं। मुझे नहीं लगता अलग अलग कि साधना के पथ पर कहीं भी समय नष्ट होता है। पर अपने विवेक का प्रयोग करो।

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