प्रश्न: गुरूजी, विवाहित महिलाएं अपने माता पिता और पति के बीच संतुलन कैसे बनाएँ?
श्री श्री रवि शंकरजी : सबसे पहले, ऐसा मत सोचे कि दोनों में कोई द्वंद्व है| यदि ऐसा प्रतीत हो भी रहा हो तो यह न माने कि कोई द्वंद्व है| जब आप सोचते हो कि कोई द्वंद्व है, तभी आप संघर्ष करते है| यदि दोने के बीच द्वंद्व हैं तो उन्हें अपने कौशल से साथ में लाये| अपने माता पिता के बारे में अच्छी बातें अपने पति से कहे और अपने पति के बारे में सब अच्छी बातें अपने माता पिता से कहे|
अक्सर लड़कियां शिकायत करने लगती है, कभी जाने, कभी अनजाने में, अपने ससुराल या अपने पति के बारे में, और माता पिता और चिंतित हो जाते हैं| बहुत बार माता पिता मुझसे आ कर कहते हैं, “गुरूजी, हमारी बेटी बहुत दुखी है”! मैं उनको देखता हूँ और कहता हूँ, “जो भी आपकी बेटी कहे उसे सौ प्रतिशत सही न माने| वे सिर्फ अपनी भावनाएं व्यक्त कर रही हैं|”
कभी कभी आप को कोई परेशानियां होती हैं और आप सब भावनाएं उड़ेल देते हैं, पर वास्तव में वह शायद इतनी बड़ी समस्या नहीं होती है| लोग बोलना पसंद करते हैं, इस लिए जब वे बोलना शुरू करते हैं तो आप नहीं जान पाते कि वास्तविकता क्या है| ऐसे में तथ्यों से आपकी कल्पनाशक्ति ज़्यादा होती है|
कभी कभी आप लोगो की सहानुभूति और ध्यान पाने के प्रयत्न में शिकायत करते चले जाते हैं| वैसे ही जैसे कई व्यक्ति अपनी बीमारी को बढ़ा चढ़ा के आपको बताते हैं| अक्सर जो साधक नहीं होते वे ऐसा करते हैं| जिन लोगों के पास ज्ञान नहीं होता, वे अपने कष्टों को बढ़ा के देखते हैं, क्योंकि उनको यह सोच कर संतुष्टि मिलती है कि लोग उन पर ध्यान दे रहे हैं| और माता पिता समस्या को और भी बड़ा समझते हैं जब उनके बच्चे शिकायत करते हैं क्योंकि वे और ज़्यादा चिंतित होते हैं|
इस लिए मैं उनसे कहता हूँ, “जब आपकी बेटी शिकायत करे तो उस पर अंशतः ही विश्वास करना| बस उसकी बात का ६०% मानना; ४०% की गुन्जायिश रखना| आपको सत्य का पता चल जाएगा|”
आप को कहानी के दोनों पहलू सुनने हैं| अपने समधियों से मिलो तो उनसे पूछो, “क्या मेरी बेटी घर पर ठीक से व्यवहार कर रही है?” वे कुछ नहीं कहेंगे| यदि वे शालीन लोग हैं तो कहेंगे “नहीं, वह ठीक है”|
आप को कहानी के दोनों पहलू सुनने हैं| अपने समधियों से मिलो तो उनसे पूछो, “क्या मेरी बेटी घर पर ठीक से व्यवहार कर रही है?” वे कुछ नहीं कहेंगे| यदि वे शालीन लोग हैं तो कहेंगे “नहीं, वह ठीक है”|
इस लिए, जब भी कोई व्यक्ति शिकायत करे, जो भी शिकायत हो, वे स्वयं भी उसमे १००% विश्वास नहीं करते| सदैव एक अतिशयोक्ति होती है| कुछ गुंजाइश होती है जो आपको छोडनी चाहिए| और सत्य उस गुन्जायिश में ही होता है!
- जय गुरुदेव
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